हमारा इंडिया न्यूज (हर पल हर खबर) जीवन दर्शन। जिसके_घर में अंदर #श्वान(कुत्ता)होता है,उसके वहाँ देवता भोजन ग्रहण नहीं करते।
यदि कुत्ता घर में हो और किसी का देहांत हो जाए तो देवताओं तक पहुँचने वाली वस्तुएं देवता स्वीकार नहीं करते, अत: यह मुक्ति में बाधक है।
कुत्ते से स्पर्श हो जाने पर द्विजों के यज्ञोपवीत खण्डित हो जाते हैं,अत: धर्मानुसार कुत्ता पालने वालों के यहाँ ब्राह्मणों को नहीं जाना चाहिए।
कुत्ते के सूंघने मात्र से प्रायश्चित्त का विधान है, कुत्ता यदि हमें सूंघ ले तो हम अपवित्र हो जाते हैं।
कुत्ता किसी भी वर्ण के यहाँ पालने का विधान नहीं है, और तो और अन्य वर्ण यदि कुत्ता पालते हैं तो वे भी उसी गति को प्राप्त हो जाते हैं।
कुत्ते की दृष्टि जिस भोजन पर पड़ जाती है वह भोजन खाने योग्य नहीं रह जाता, यही कारण है कि जहाँ कुत्ता पला हो वहाँ नहीं जाना चाहिए।
उपरोक्त सभी बातें शास्त्रीय हैं अन्यथा ना लें,ये कपोल कल्पित बातें नहीं है। इस विषय पर कुतर्क करने वाला व्यक्ति यह भी स्मरण रखे !
कुत्ते के साथ व्यवहार के कारण तो धर्मराज युधिष्ठिर जी को भी स्वर्ग के बाहर ही रोक दिया गया था। महाभारत में महाप्रस्थानिक/स्वर्गारोहण पर्व का अंतिम अध्याय धर्मराज इंद्र और युधिष्ठिर संवाद में इस बात का उल्लेख है। जब युधिष्ठिर ने पूँछा कि मेरे साथ-साथ यहाँ तक आने वाले इस कुत्ते को मैं अपने साथ स्वर्ग क्यों नहीं ले जा सकता हूँ।
तब देवराज इंद्र ने कहा -
इंद्र उवाच
स्वर्गे लोके श्ववतां नास्ति धिष्ण्यमिष्टापूर्तं क्रोधवशा हरन्ति।
ततो विचार्य क्रियतां धर्मराज त्यज श्वानं नात्र नृशंसमस्ति॥
महाभारत, महाप्र॰ ३।१०
हे राजन! कुत्ता पालने वाले के लिए स्वर्ग में स्थान नहीं है। ऐसे व्यक्तियों का स्वर्ग में प्रवेश वर्जित है। कुत्ते पाले हुए घर में किये गए यज्ञ और सभी माङ्गलिक पुण्य कर्म के फल को '#क्रोधवश' नामक राक्षस हरण कर लेता है और तो और उस घर के व्यक्ति भी जो कोई दान, पुण्य, स्वाध्याय, पूजन, हवन इत्यादि से पुण्य फल इकट्ठा करते है, वह सब घर में पाले हुए कुत्ते की दृष्टि पड़ने मात्र से निष्फल हो जाता है। इसलिए कुत्ते को घर में पालना...निषिद्ध और वर्जित है।
निश्चित ही जीवमात्र पर दया के भाव से कुत्ते का संरक्षण होना चाहिए, उसे भोजन देना चाहिए, घर में भोजन बनने के बाद अंतिम एक रोटी पर कुत्ते का अधिकार होता है इसलिए आखिरी रोटी घर के बाहर कुत्ते को अवश्य ही खिलाना चाहिए। इस पशु को कभी भी प्रताड़ित नहीं करना चाहिए और दूर से ही इसकी सेवा करनी चाहिए परन्तु ध्यान रखें - घर के बाहर, घर के अंदर कदापि नहीं। यही शास्त्रमत है।
महाभारत में आया है ‒
भिन्नभाण्डं च खट्वां च कुक्कुटं शुनकं तथा।
अप्रशस्तानि सर्वाणि यश्च वृक्षो गृहेरुहः॥
भिन्नभाण्डे कलिं प्राहुः खट्वायां तु धनक्षयः।
कुक्कुटे शुनके चैव हविर्नाश्नन्ति देवताः।
वृक्षमूले ध्रुवं सत्त्वं तस्माद् वृक्ष न रोपयेत्॥
महाभारत, अनु॰ १२७ । १५-१६
"घरमें फूटे बर्तन, टूटी खाट, मुर्गा, कुत्ता और अश्वत्थादि वृक्ष का होना अच्छा नहीं माना गया है। फूटे बर्तन में कलियुग का वास कहा गया है। टूटी खाट रहने से धन की हानि होती है। मुर्गे और कुत्ते के रहने पर देवता उस घर में हविष्य ग्रहण नहीं करते तथा मकान के अन्दर कोई बड़ा वृक्ष(पीपल आदि) होने पर उसकी जड़ के भीतर साँप, बिच्छू आदि जन्तुओं का रहना अनिवार्य हो जाता है, इसलिये घर के भीतर ऐसे पेड़ न लगाये।
अतिथि और गाय घर के अंदर एवं कुत्ता, कौवा, चींटी... घर के बाहर ही फलदाई होते है।
यह शास्त्रसम्मत आलेख सनातन धर्मावलम्बियों के लिए है,आधुनिक विचारधारा के लोग इससे सहमत या असहमत होने के लिए बाध्य नहीं है।
समय का परिवर्तन कहें या बौद्धिक दिवालियापन किन्तु सत्य यही है कि गौ और वृद्ध माता-पिता - दिल से, घर से, और शहर से निकलते हुए गौशालाओं व वृद्धाश्रम में पहुंच गए और कुत्ते घर के बाहर से घर में सोफे व बिस्तर से होते हुए दिल मे पहुंच गए...यही हमारा सांस्कृतिक पतन है।
पंडित श्रवण शास्त्री, जबलपुर, मप्र।
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